नई दिल्ली : इंफाल की आयरन लेडी इरोम शर्मिला का परिचय किसी का मोहताज नहीं है. नाम, शोहरत और संघर्ष का उनका उदाहरण बेमिसाल है. लेकिन यह बात जानकर आश्चर्य होगा कि आज इरोम शर्मिला बेघर हैं. उनके पास रहने के लिए एक घर भी नहीं है. उनके परिजनों में उन्हें घर में आने से मना कर दिया.
इरोम शर्मिला जब 16 साल बाद अनशन को तोड़कर अपने गांव और घर की तरफ बढ़ी तो उन्हें बड़ी मायूसी हाथ लगी. इरोम जब अपने घर पहुंची तो वहां लोगों ने उन्हें अंदर घुसने से रोक दिया. यहां तक की इस्कॉन मंदिर ने भी आयरन लेडी को रहने की जगह तक नहीं दी.
अपनी ही जगह से बेगानी की गई इरोम के पास दोबारा इंफाल के अस्पताल लौटने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था. ये वही अस्पताल है जहां इरोम बीते 16 साल से अनशन पर थीं. ये अस्पताल इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी की है.
अस्पताल के डॉक्टर वाई मोहन ने कहा कि इरोम जब तक चाहें यहां रह सकती हैं. डॉक्टर मोहन ने आगे कहा कि जब हमने सुना कि शर्मिला के रहने के लिए कहीं जगह नहीं है तो हमें बहुत दुख हुआ. हमनें मानवता और सुरक्षा की नज़र से ये फैसला किया कि हमें शर्मिला को यहां रहने देना चाहिए.
इस पूरी घटना पर इरोम का कहना है कि लोगों ने उनके फैसले को ग़लत समझ लिया है. उन्होंने कहा कि मैंने ये लड़ाई नहीं छोड़ी है सिर्फ तरीका बदला है. मैं चाहती हूं कि ये लोग मुझे समझें. इरोम ने कहा कि जब मेरे लोगों ने मुझसे वहां से जाने के लिए कहा तो मुझे लगा कि इससे अच्छा तो वो उन्हें पीट-पीट कर मार देते. अनशन से मरने और ऐसे मरने में ज़्यादा फर्क नहीं पड़ता. इरोम का कहना है कि वो ज़्यादा दिन उस अस्पताल में नहीं बिताएंगी. दो तीन दिन के अंदर ही वो वहां से चली जाएंगी.
हालांकि, इरोम को घर की पेशकश डॉक्टर टीएच सुरेश ने भी की थी, लेकिन अब उनका अपने पलटे रुख पर कहना है, मुझे निजी तौर पर शर्मिला को वहां से जाने के लिए कहने पर बुरा लगा. लेकिन सोसायटी के लोगों को सुरक्षा का डर सता रहा था. उग्रवादी गुटों ने शर्मिला को जान से मारने की धमकी दी थी.
मणिपुर के लोगों का कहना है कि आफस्पा के खिलाफ लड़ाई में इरोम के फैसले से उन्हें निराशा हुई है. शर्मिला की हमउम्र एक महिला ने कहा कि इरोम को भी जीने का, शादी करने और पारिवारिक ज़िंदगी जीने का हक है लेकिन लड़ाई शुरू करने के बाद उसे आधे में ही छोड़कर जाना ठीक नहीं है.
इंफाल में इरोम के खिलाफ जहां आवाज़ें उठ रहीं है वहीं कई ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने उनके हक में आवाज़ उठाई है. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा है कि उनके साथ अन्याय हो रहा है. इरोम को भी ज़िंदगी जीने का हक है.