नई दिल्ली : वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय में मामलों के आवंटन का एक तरीका है। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि कंप्यूटरीकरण के बावजूद एक के बाद एक जो प्रधान न्यायाधीश हुए हैं वो चयनात्मक ढंग से मामलों का आवंटन करते रहे हैं।
दवे ने पूरी व्यवस्था को न सिर्फ स्वेच्छाचारी बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण, घटिया और निंदनीय बताया।
ऑनलाइन पोर्टल डेलीओ को दिए एक साक्षात्कार में दवे ने कहा कि चार न्यायाधीशों ने सर्वोच्च न्यायालय के जिन दुखद मसलों को सार्वजनिक किया है उनमें कुछ नया नहीं है और इनसे शीर्ष अदालत के कामकामज पर पिछले डेढ़ दशक से असर पर रहा है क्योंकि एक के बाद एक आने वाले प्रधान न्यायाधीश उसी परंपरा को जारी रखे हुए हैं।
दवे के मुताबिक, इन मुद्दों का तुरंत कोई समाधान नहीं है क्योंकि इनके समाधान में काफी लंबा वक्त लगेगा। उन्होंने कहा, इसका समाधान बहुत जल्दी नहीं होने वाला है। काफी या मैगी नूडल्स की तरह तत्काल परिणाम नहीं आएंगे। इसमें लंबा समय लगेगा और यह दुखदायी प्रक्रिया होगी।
लखनऊ के मेडिकल कॉलेज घोटाले के घटनाक्रम को याद करते हुए दवे ने मामले में जिस तरीके से न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर की अध्यक्षता वाली पीठ के फैसले को प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की पीठ ने बदल दिया उसकी आलोचना की।
उन्होंने कहा, सचमुच मेरा मानना था कि प्रशासनिक और न्यायकि दृष्टि से प्रधान न्यायाधीश उस मामले को लेने में सक्षम नहीं थे।
दवे ने कहा कि जिस तरीके से मामले को लिया गया वह पूरी तरह गलत था।